
TEMPLE ARCHITECTURE
Hindu temple architecture is a synthesis of art, science, and spirituality, designed to represent the universe and connect humans with the divine
Vast
Experience
Professional
Team
High
Finish
Sustainable
& Accountable
"Temple Reimagined: A Virtual Spiritual Experience"
This is part of our work, and in addition to this, many other tasks are also in progress. We are continuously working on this project, putting in our full effort and dedication to move each task in the right direction. Along with the temple construction, other essential tasks are also being completed, ensuring the success of the project. All tasks are currently in progress, and we are committed to completing them promptly.




सोमपुरा भारत के प्राचीन और प्रसिद्ध कारीगरों, वास्तुकारों और मंदिर निर्माण विशेषज्ञों का एक समुदाय है, जो विशेष रूप से पारंपरिक मंदिर वास्तुकला में अपनी कुशलता के लिए जाना जाता है। उनकी वास्तुकला की परंपरा का आधार वेद, पुराण और शिल्प शास्त्र (कला, शिल्प और वास्तुकला पर प्राचीन ग्रंथ) हैं। यह समुदाय सदियों से हिंदू मंदिर वास्तुकला की समृद्ध विरासत को संरक्षित और बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
शिल्प शास्त्र और सोमपुरा परंपरा:
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सोमपुरा समुदाय शिल्प शास्त्र के नियमों का पालन करके मंदिरों का निर्माण करते हैं। इन नियमों में मंदिरों की आकार-प्रकार, स्तंभ, शिखर, और गरभगृह की सही संरचना के सिद्धांत शामिल हैं।
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सोमनाथ मंदिर, द्वारका मंदिर, और दिलवाड़ा जैन मंदिर जैसी भव्य संरचनाएँ सोमपुरा कारीगरों की वास्तुकला का प्रमाण हैं।
वेदों और पुराणों में सोमपुरा का उल्लेख:
वेदों से संबंध:
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ऋग्वेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद में वास्तुकला, ज्यामिति, और पवित्र मापदंडों (वास्तु) का विशेष उल्लेख मिलता है। इनका सीधा संबंध सोमपुरा परंपरा से है, जिसमें मंदिर निर्माण के दौरान इन सिद्धांतों का पालन किया जाता है।
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मंदिर डिज़ाइन का आधार वास्तु पुरुष मंडल है, जो एक कौस्मिक (सामग्री और आध्यात्मिक) मानचित्र है और इसका उल्लेख वेदों में मिलता है। यह मंदिर के निर्माण को दिव्य ऊर्जा से जोड़ता है।
पुराणों में सोमपुरा की भूमिका:
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स्कंद पुराण, विष्णु पुराण, और अग्नि पुराण जैसे ग्रंथों में मंदिर निर्माण की प्रक्रियाओं और कारीगरों के महत्व का वर्णन मिलता है।
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इन पुराणों में शिल्प शास्त्र और मंदिर वास्तुकला के नियमों को सोमपुरा समुदाय द्वारा संरक्षित और उपयोग किए जाने की बात कही गई है।
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पुराणों में मंदिरों के निर्माण को धर्म और आध्यात्मिक ऊर्जा को बढ़ाने का माध्यम बताया गया है।



